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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५) नंदीश्वरपूजा । १६१ महम हैं जिम ॥ तेम जुवन मकाररे ॥ धूप पूजा ते नविकनो। गुण सुगंधि बिचाररे ॥ जग० ॥ ४ ॥ जव अंधकप पतंत उधरत । धूप अरचन धाररे । कहत गणि शिवचंद पाठक । पूज चतुर्थी साररे ज० ॥ ५॥ ॥काव्य ॥ नव सुदस्तर वारिधि तारणं । विषय सौख्य विकार निवारकं । निरूपमोत्तर मंग ल कारकं । जिनगणं धृतधूप करायते ॥ १ नही अर्ह परमात्म० प्रणत कठिन०॥ नंदी श्वरा० श्री रिषनानन चंद्रानन । वारिषेण वर्षमानानिधान अ० धूपं यजामहे स्वाहा इति चतुर्थी धूप पूजा ॥ ४ ॥ . ॥दोहा॥ दीप पूज इह पंचमी । करिये विविध प्रकार ॥ दीप पूज करतो नविक । दीपें जगतमकार ॥१॥ ॥ तेरी पूजावणी तेरसमै एचाल ॥ मेरी लगीय प्रीत प्रनु चरणा । जिनगुण परिणति करण कारण ॥ सकललोक सुखकर ण मे० ॥ १ ॥ गहिरसिंधुनव निपतित ता For Private And Personal Use Only
SR No.020404
Book TitleJin Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Gani
PublisherRushi Nankchand
Publication Year1933
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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