________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१६०
नं० श्व० पू० ॥
(४)
॥ काव्य ॥ नव दवानल ताप घनाघनं । कुशल चंद न नंदन काननं ॥ विशद शारद चंद समा ननं । जिनगणं कुसुमै च समर्चयेः ॥६॥
हात्री अर्ह परमात्मज्योनिंता० ॥ प्रणत० कठिन० नंदी० श्री रिपन्नानन चंानन वा रिषेण वर्षमाना निधान २० जिनेन्यो पु ष्पं यजामहेस्वाहा ॥ इतितृतीयपुष्पपूजा ॥३
॥दोहा॥ जगनायक जिनचंद नी । एह चतुर्थिजा ण॥ धूपपूज करिये सदा। हरिये कुमति
शनाण ॥१॥ सबशरतिमथनमुदारधूपं एचाल ॥ जग कुशलकारि घालि हरणं । धूपपूजन दाररे ॥ धूप अनलै कुगति दुखनर । फलद दहन अपाररे ॥ १ ॥ ज० ॥ सरस चंदन अगर अंबर । मगमदा घनसाररे ॥ कुंदरू कबली सेलारस । करिये गंधवटि साररे ॥ २ ॥ जग० ॥ रतनमय वर धूप धाणो ॥ धूपन्नत करधाररे । सुर पुरंदर पूजकरतां ॥ लहै लान अपाररे ज० ॥ ३ ॥ धूपपरिमल
For Private And Personal Use Only