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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३) नं० श्व० पू०॥ १५९ जामहेस्वाहा इतिद्वितीया गंधपूजा संपूर्णम् ॥दोहा॥ तृतीयपूज जिनराजनी। विकसित श तिहिरसाल ॥ सुरलि कुसुमकरि नवियज न । करिये नक्ति विशाल ॥१॥ ॥पांचवरणी अंगीरची एचाल॥ एह जिनकी पंकहरणी नगतिसारी । मि लिकरि हरिवर सकल सुरासुर ॥ त्रिकरण इ क करि हितकारी एह० ॥ १ ॥ अनुनवरस युत चिन्न नक्तिधरि । पूरब पुन्य उदय नारी एह० ॥ इणबिध कुसुम नक्ति जिनवरकी। करइ हरइ घन दुरितारी। एह० ॥ २॥ मा लती नागपुनाग केवको । दमणक कुंद सुगं धिधारी एह०॥ मसक केतकी पन मोगरा कुसुममालकरि मनुहारी ए० ॥३॥ जिनवर कंठ ठवें प्रनु शगल । कुसुमपुंज धरि दुख वारी ए० ॥ इण बिध पुष्प नक्तिकरि नवि जन । वरइ सकल जग सिरि नारी एह० ॥ ४ ॥ करिके शुकलध्यान पावकसें । जस्म वि षम समक्रमवारी ए०॥चिदानंदघनपद शिव चंदोपम । पामें शतिगुण विसतारी॥ ए०॥५ For Private And Personal Use Only
SR No.020404
Book TitleJin Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Gani
PublisherRushi Nankchand
Publication Year1933
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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