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(३)
नं० श्व० पू०॥
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जामहेस्वाहा इतिद्वितीया गंधपूजा संपूर्णम्
॥दोहा॥ तृतीयपूज जिनराजनी। विकसित श तिहिरसाल ॥ सुरलि कुसुमकरि नवियज
न । करिये नक्ति विशाल ॥१॥
॥पांचवरणी अंगीरची एचाल॥ एह जिनकी पंकहरणी नगतिसारी । मि लिकरि हरिवर सकल सुरासुर ॥ त्रिकरण इ क करि हितकारी एह० ॥ १ ॥ अनुनवरस युत चिन्न नक्तिधरि । पूरब पुन्य उदय नारी एह० ॥ इणबिध कुसुम नक्ति जिनवरकी। करइ हरइ घन दुरितारी। एह० ॥ २॥ मा लती नागपुनाग केवको । दमणक कुंद सुगं धिधारी एह०॥ मसक केतकी पन मोगरा कुसुममालकरि मनुहारी ए० ॥३॥ जिनवर कंठ ठवें प्रनु शगल । कुसुमपुंज धरि दुख वारी ए० ॥ इण बिध पुष्प नक्तिकरि नवि जन । वरइ सकल जग सिरि नारी एह० ॥ ४ ॥ करिके शुकलध्यान पावकसें । जस्म वि षम समक्रमवारी ए०॥चिदानंदघनपद शिव चंदोपम । पामें शतिगुण विसतारी॥ ए०॥५
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