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॥ चौ० जि० पू० ॥
बिकसितनये ॥ जिमकजलखिदिनकार ॥ २ ॥ मृतजलध रबरसियो प्र० ब० । नविउरखे मकार | दर्शनसुरतरु ऊगियो प्र०ए शिव फलनोंदातार ॥ ३ ॥ तुझी पर० नं०ज० श्रीम त्सुबिधिजिनेंद्राय ज० नैवे० यजामहेस्वाहा ९ ॥ इति सुविविजिन पूजा ॥ ॥ दोहा ॥
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मुऊतन मन शीतलकरो । श्री शीतलजिन राय ॥ तुमसमरण जलधारसे । अंतरतपतपु
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लाय ॥ १ ॥
॥ दादाकुशल सूरिंदएचालमें ॥ घाटो ॥ मेरे दीनदयाल | तुमनयेसकललोक प्रति पाल मे० ॥ सुणशीतलजिनवरमहाराज । च रणसरणधस्यो प्रजुनोंच्छाज ॥ ननमूंसकारी देव | करिस्यूंचरणकमलनीसेव मे० ॥ १ ॥ जैसे सुरमणिकरतलपाय | कुणले का चसकलउलसा य ॥ तुमसमसुरवर प्रवरनकोय । हेर २ जग निरख्योजोय मे० ॥ २ ॥ प्रनुदरसण जलध रघनघोर । लखीयनिरतकरें नविजनमोर ॥ पदशिवचंद बिमलनरतार । शिवबनिता घतिसुखकार मे० ॥ ३ ॥ परम० नं०
*मरज एक सरधरिये सार ॥