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॥ सतरहजेदी ॥
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महति । आपें दान एनंग ॥१॥ .
॥राग नहनारायण ॥ जिनराजको ध्वज मोहन जि० मोहना सुगर शधिवासिन। करि पंच सबद त्रिप्रद विणा । सधव वधू शिरसोहण जि०॥१॥ जांतिवसन पांच वरण वन्योरी । विध करि ध्वज को रोहण । साधु लणति नवमी पूजा नव पाप नियांणा खोहण । शिव मंदिर कुं रुधिरोहण जन मोह्यो नहनारायण जि०२
॥ इति ध्वजपूजा ॥ ९॥
॥ अथ शानरण पूजा ॥
॥ राग केदारो दोहा॥ शिरसोहै जिनवरतणे । रयण मुगट क लकंत ॥ तिलक नाल अंगद नुजा । श्रवण कुंकल अतिकंत ॥ १ ॥ दशमी पूजा आन रणकी । रचना यथा शनेक । सुरपति प्रनु अंगें रचै । तिम श्रावक सुविवेक ॥ २॥
॥ राग अधरास वा गुंफमल्हार ॥ पाच पिरोजा नीलू लसणीया । मोतीमा
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