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॥ सतरहनेदी ॥
मती जन खीजै जी ॥ १ ॥ ॥ राग सामेरी ॥
पूजोरी माई जिनवर अंग सुगंधें। गंध वटी घनसार उदारे । गोत्र तिर्थंकर बां चैं पू० ॥ १ ॥ आठमी पूजा अगर सेलारस लावें जिन तनु रागें । धार कपूर जाव घन बरषत । सामेरी मति जागें पू० ॥ २ ॥ ॥ इति गंध वटी पूजा ॥ ८ ॥
मूल ॥ १ ॥
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॥ शूथ ध्वज पूजा ॥
॥ दोहा ॥
मन मोहन धर मस्तकै । सूहव गीत समू ल ॥ दीजे तीन प्रदक्षिणा । नवमी पूजा
॥ राग मेघ गउडी में वस्तु ॥
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सहस जोयण रहेममय दंग । युतपताक पांचे वरण | घुम घुमंति घूघरी वाजै । मृ दु समीर लहकै गयणं । जाण कुमति दल सयल जांजै। सुरपति जिम विरचै धजा ए | नवमी पूज सुरंग । तिणपरि श्रावक घज