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कुसुमांजलि मेलो बीर जिणंदा तोरा चरण कमल चोवीस पूजोरे चोवीस सोनागी घो वीस वैरागी चोवीस जिणंदा कुसुमांजलि मेलो बीरजिणंदा॥
॥ इति पांखडी गाथा ५॥
॥ बस्तु ॥ सयल जिन वर सयल जिन वर नमिय मनरंग । कल्लाणक विह संथविय। करि सुज म्म सुपवित्त सुंदर । सय इक सत्तरि तित्यं कर । इक्क समैं विहरंत महियल । चवण समैं इकवीस जिण। जम्म समैं इकवीस । नत्तिय नावें पूजिया। करो संघ सजगीस ॥१॥ ॥ इक दिन अचिरा हुलरावती एदेशी ॥
भव तीजे समकित गुण रम्या । जिन नक्ति प्रमुख गुण परिणम्या ॥ तजि इंद्विय सुख
आसंसना । करि थानक वीसनी सेवना। ति राग प्रशस्त प्रजावता । मन नावना ए हवी जावता । सविजीव करूं शासन रसी इसी नाव दया मन उलसी । लहि परिणा
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