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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९६ ॥ वि० स्था० पू०॥ (२) लहैं। तीर्थकरचरण कमलाविलाशं ॥४॥वर बिबुध मणि लही काच लघु शकल कों। ग्र हण करिवा कवण कर पसारे । तिम लहीजि न चरण शरण शुन योग सें। श्वर सुरसरण कुण ह दय धारै ॥५॥ प्रन्नु तणे पंच कल्या केरे दिन। प्रगट तिज लोकमें जइ उजेरो। नविक देव पाल श्रेणिक प्रमुख जिन नमी बांधियो गोत्र जिनराज केरो ॥ ६ ॥ जेह त्रिण काल नित नमैं जिन हरखसुं । तेह न व जल तिरे जनम तीजें । शधिक नव य दि करे । तदपि निश्चय करी ॥ सप्त ७ वलि अष्ट नव करीय सीकै॥७॥ ॥काव्य ॥ णमो णंतबिन्नाण सहसणाणं । सयाणंदि या सेस जंतू गणाणं । नवं नोज वियणे वारणाणं । णमो वोहियाणं वराणं जिणाणं ८॥ जी श्री अहम्यो नमः ॥ ॥ इति प्रथमपदे श्रीजिनेंद पूजा ॥१॥ ॥दोहा॥ तन त्रिनाग के घटन ते ॥ घन श्वगा हन जास । विमल नाण दंसण कियो । लो For Private And Personal Use Only
SR No.020404
Book TitleJin Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Gani
PublisherRushi Nankchand
Publication Year1933
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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