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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१) वि० स्था० पू०॥ ९५ धजानिये। सन्तर १७ इगविस २१ सार ॥३॥ अष्ट८ जातिना कलश करि । बिमलजलें नर पूर ॥ पूजो नवियण सज २० मुदा । होय सकल दुख दूर ॥ ४ ॥ सोहै सऊ परमेष्ठि मैं जिनवरपद अनिराम ॥ बेद ४ निपें सम रिये । वधते शुलपरिणाम ॥ ५॥ ॥ रागदेशाख । पूर्वमुखसावनं एचाल॥ सकलजगनायकं । परमपददायकं । लाय कं जिनपदं विमलनानं । चतुरधिकतीस ३४ अतिशय अमलबार १२ गुण । वचन पणतीस ३५ गुणमणिनिधानं ॥ १ ॥ सुखकरण जिन चरण पटलसेवित सदा । नमर सुर शसुर नर हदयहारी । एहजिनवरतणी आण पूरणसदा दामजिम जगतजन शिरसि धारी थईयो॥२ जिनपपददरशपारसफरशतेंजवें । प्रगटनिज रूप परिणति विनासं । तजिय वहिरात्म गि रिसारता नविलहै । अनुपमं आत्म कांचन प्रकाशं ॥३॥ ऊवइ जिनराज पद जाप रवि किरण तै। तुरत बऊ दुरित जर तिमि र नाशं । घन चिदानंद वरकंदधन नवि For Private And Personal Use Only
SR No.020404
Book TitleJin Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Gani
PublisherRushi Nankchand
Publication Year1933
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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