SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 100
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) ॥वि० स्था० पू०॥ ९७ - - कालोक प्रकास ॥१॥ बिनासी अप्रमित शचल । पदवासी विकार । अगम गो चर शजर राज । नमो सिझ जयकार ॥२॥ ॥राग सोरठ कुंदकिरणशशिऊजलोरेदेवा ॥ अनुनव परमानंदसुंरे बाला । परमातम पद बंदो रे। करम निकंदो बंदिने रे वा० । लहि जिनपद चिरनंदो रे ॥१॥ गगन पए शंतर बली रे वा०। समयांतर अणफरसी रे व्य सगुण परजायना रे वाला। एक समय विध दरसी रे ॥ २ ॥ एक समय शजु गति करीरे वाला। नए परमपद रामी रे।नांजै सादि अनंत रे वा० । निरुपाधिक सुख धामी रे॥३॥ अखिल करममल परिहरी रे बाला। सिझ सकल सुख कारी रे । विमल चिदानं द घन थयारे वाला । वर इकतीस गुण धारी रे ॥४॥ उतपन्नता वलि विगमता रे बाला ध्रवता ३ त्रिपदी संगें रे। प्रनु मैं अनंत च तुष्कता रे बाला। सोहें शमकम नंगें रे॥५॥ पनर १५ नेद ए सिछ थयारे बाला । सह जानंद स्वरूपी रे। परम ज्योति मैं परिण For Private And Personal Use Only
SR No.020404
Book TitleJin Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Gani
PublisherRushi Nankchand
Publication Year1933
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy