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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ९८ ॥ विं० स्या० पू० ॥ (२) म्यारे बाला । अव्याबाध रूपी रे ॥ ६ ॥ जिनवर पिणप्रण मैं सदारे वाला। एहनें दीक्षा प्रवसरे रे । तिण प्रभुपद गुणमालिका रे बा ला । कंठे धरिये सुपरै रे ॥ ७ ॥ हस्ति पा ल नवि जगतिसुं रे वाला | सिद्ध परम पद जजिने रे । पद श्री जिन हरखे लह्यो रे बा ला । पर गुण परणति तजिनें रे ॥ ८ ॥ ॥ काव्यं ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लोगग्गनागोपरि संठियाणं । बुझाणसिद्धा णं मणिंदियाणं । निस्सेस कम्मरकय कारगा णं । णमो सया मंगल धारगाणं ॥ ९ ॥ मुँजी श्री सिद्धभ्यो नमः ॥ ॥ इति द्वितीय पदे श्री सिद्ध पूजा ॥ ॥ दोहा ॥ पदतृतीय प्रबचन नमो | ज्युनजमो संसा र ॥ गमो कुमति परिणमनता । दमो करण जयकार ॥ १ ॥ जैसे जलधर वृष्टि तें । ल फल्द विकसाय ॥ तैसें प्रवचन शक्तितें । शु न परिणति उलसाय ॥ २ ॥ खि ॥ श्रीराग जिनगुणगानंश्रुतच्यमृतं एचालमै ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020404
Book TitleJin Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Gani
PublisherRushi Nankchand
Publication Year1933
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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