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ACI
॥ पूजा ॥
| स7 जी तिहां सुरपति श्रावीरह्या॥
॥ टक ॥ आविया सुरपति सर्बजगत कलश श्रेणि बणाअए । सिद्धार्थ पमुहा तीर्थ अषधि सर्व वस्तु अणावए । अन्नू यपति तिहां हु कम कीनो देव कोडा कोडिनें । जिन मज नारथ नीरल्यावो सबै सुर करजोडिनें ॥ ॥ ढाल शांतिने कारण इंद कलशा नरै ॥
आत्मसाधन रसी देवकोडी हसी। उल्लसीने धसी खीरसागर दिशि।पउमदह आदि दहगं ग पमुहा नई । तीर्थजलअमल लेबा नणी ते गई। जाति अङ कल करि सहस अठोत्त रा॥बत्र चामर सिंहासणे शुलतरा । उप गरण पुष्फचंगेरि पमुहा सबें॥ आगमें ना सिया तेम आणी ठमें। तीर्थ जल नरिय क रिकलश करि देवता।गावता नावता धर्म उन्नतिरता । तिरिय नर अमरने हर्ष उपजा वता धन्य अमसक्ति शुचिनक्ति इमनावता समकित वीज निज आत्म आरोपता । कल श पाणीमिसै नक्ति जलसींचता। मेस सिहरो
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