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॥ पूजा ॥
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॥ त्रूटक ॥ वधाविया जिनवर हर्ष बहुलै धन्य कृत पून्यए । त्रैलोक्य नायक देव दीठो मुक समो कुण अन्य ॥ हे जगत जननी पुत्र तुमचो मेरु मान वरकरी । उच्छंग तु मचै बलिय धापिस तमां पुन्ये जरी ॥
॥ ढाल ॥
सुरनायक जी जिन निज कर कमलें ठव्या । पांच रूपैंजी अतिशय महिमा यें स्तव्या ॥ नाटक विधजी तब बत्तीस याग ल है । सुर कोडीजी जिन दरसण नें ऊमहै ॥ त्रूटक ॥.
सुर कोड कोडी नाचती बलि नाथ शुचि गुण गावती । अपरा कोडी हाथ जोडी हाव भाव दिखावती ॥ जयजयो तूं जिन राज जगगुरु एमई प्रासीस ए । म त्राण चारण आधार जीवन एक तूं जगदीसए ॥
॥ ढाल ॥
सुर गिरवरजी पांडुक बनमें चिहूं दिसैं गिरि सिल परजी सिंहासन सासयबसै ॥ ति हां प्राणीजी शर्क जिन खोलै गह्या । चउ
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