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॥ नं० श्व० पू० ॥
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अणावें ॥ पूंगीफल दाि
वला । केला शाम म परमुखफल | जिनवर चरण चढावें जि० ३ ॥ जेवि फलपूजा जिनवरकी । करैकरा वेंजावें ॥ अनुमोदें तेपरम चिदानंद | घन मृत फलपावें जि० ॥ ४ ॥ वरस ढार बि होत्तर जेठें। प्रतिपद सुकल सुहावें ॥ चंद सूनुवासर जयनगरै । खरतर गच्छजगचावें जि० ॥ ५ ॥ श्रीजिनहर्ष सूरि सूरीसर । वि । जयमान वदावें ॥ रूपचंद गणिपाठक पा री । वादींद विरुद धरावें जि० ॥ ६ ॥ ता ससीस वाचक पुन्यशील सिष ॥ समय सुंदर कहिरावें ॥ तासुसीस पाठक शिव चंदै । पू जरची मननावें जि० ॥ ७ ॥ जेनंदीश्वर शा वत जिनकी । वसुविध पूजरचावें ॥ तेजन सकल लोकके ईश्वर । तीर्थ करपद पावें जि०
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॥ कला ॥
सुरपति सुरासुर वृंद वंदित चरण पंकज मघहरं । सतुद्वीप नंदीश्वर जिनालय परम तर सुख माकरं ॥ अति विशद हिमकर चं प्रिका मल निखिल गुण मणि सागरं । जि नराज गण मह मर्चये वरफल चयैः करुणा