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(८)
॥ नं० ० पू० ॥
केरो । संचित भूरिहरइ दुरितं जि० ॥ ५ ॥
॥ काव्य ॥
अनंतविज्ञानमयस्वरूपं । समस्त लोकत्रय नूतिनूपं ॥ लस णौघामृत चारुकूपं । यजे सुनैवेदाच्या नियं ॥ ६ ॥ | श्री परमात्मन्योऽनंता प्रणत० कठिन०नंदी०श्री रिषनानन चंद्रानन वारिषेण वर्द्धमाना नि धाना ष्टोतरैक० जिने ०च्यो नैवेदां यजामहे स्वाहाः ॥ इति सप्तमी नैवेदन पूजा ॥ ७ ॥ ॥ दोहा ॥
जिनफल पूजा अष्टमी । कष्टानिष्ट वि दार ॥ करिये शुभजावें सदा | जरिये पु
न्यत्तंझार ॥ १ ॥
॥ तेजतरणि मुखराजै एचाल ॥ सुरनायक जसगावें । जिनजीको सुर०ए की ॥ निरमल मनवच काय करणते । लुलि २ शीस नमावें । सुर अबतार सफल जयोमेरो । जिनपूजन सुपसावें जि० ॥ १ ॥ नयनचकोर चंद्र समज्योती । संचितदूर पु लावें ॥ निरखि२ मनमोहन मूरति । नंद अंगनमावें जि० ॥ २ ॥ नालिकेर नारंगी क
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