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॥नं० श्व० पू०॥
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नंदीश्वरा०श्रीरिषनाननचंद्रानन वारिषेणव ईमाना निधानाष्टोत्तरैक०जिनेअक्षतंयजा महे स्वाहाः ॥ इति बहीशक्तपूजा ॥ ६ ॥
॥दोहा॥ हिवपूजा नैवेदानी । सप्तम अतिहिवि साल ॥ करिये जिनवरनी श्चल । लहि
ये मंगल माल ॥१॥ ॥ राग जिनगुणगानं श्रुतशमृतं एचाल ॥
जिनवरदरसण वरअमृतं । ए जिनदरा ण अमृत फरसै ॥ नवि तजि मिथ्याश्यगुण तं जि०॥ १ ॥ जगदीसरपरमात्मदशापद। पामें अनुपम कांचनतं ॥ तिणसें सुरपति प्र नुदरसणवरि । नगते गावें जिनचरितं जि० २॥ मोदक घृत वरखजक परमुख । वरनवे दासरसधरितं ॥ हरिगण जगप्रनु शागलढो वें। मणिमय कनकथाल नरितं जि०॥३॥ जे नैवेद्य करी जिनपूजन । करइ तेह जगम न हरितं ॥ अतिही स्वादु सुरगति शिवपद सुख । ततिनित सेवें वितुरितं जि०॥४॥ विंशति पदमें ये जिनपतिपद । वरशिवचं द विमल शमितं ॥ इणपद सेवक नविजन
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