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॥नं० श्व०पू० ॥
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करं ॥ ९ ॥झी श्री परमात्मन्यो ऽनंता० प्रणतस० कठिन० नंदीश्वरा० श्री शषना नन चंद्धानन वारिषेण वर्षमाना निधानाष्टो तरैकशत शाश्वत जिनेंद्रच्यः फलं यजामहे स्वाहाः ॥ इत्यष्ठमीफल पूजा ॥ ९ ॥
॥दोहा॥ पूरब दिसि अंजन गिरी । मंदिरगत जि नराज ॥ शमविधि पूजा ये सदा । शरची जै हितकाज ॥ १ ॥ पूरब परमुख चिऊं दि सै। पुक्करणी शनिराम ॥ दधि मुख चनमं दिर जिना । अरचीजै शुन काम ॥ २ ॥ई शानादि बिदिशिगत । वसुरतिकर गिरिराज मंदिर गत जिनराजकी॥ करिये पूजसमाज ३॥ दक्षिण अंजनशैलमें । चउ दिशिदधि मुख सार। चउमंदिर जिनराज की॥ करिये पूज उदार ॥ ४ ॥ दक्षिण दिशि अंजन गि री। मंदिरगत जिनराज ॥ वसुविधि पूजा ये सदा । पूजी जे हित काज ॥ ५॥ ददि ण ईशानादिकै । विदिश शतिहि उदार ॥ शक रतिकर गिरिवर जिना । पूजो विवि ध प्रकार ॥६॥ पश्चिम दिशि अंजन गिरी
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