________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(२)
पां०क०पू० ॥
१७५
-
॥दोहा॥ प्रगटे पावन पतित पुनु । अधम उधार न काज ॥ नृपकुल मांहें अवतरें त्रिनुवन
के शिर ताज ॥१॥
॥राग सोरठी॥ आजअधिक शानंद नयोरेवाला । याज सुरंग वधाई रे ॥ जगपति जिनवर जनमि यारे वाला । सुरवधु वन मिलथाई रे १ ॥ शाबोशाज शनंदघन उलटो रेदेवा। दिश कुमरी हरषाई रे॥ शबोदशदिश निर्मलता थई रेदेवा । फूलरही वन राई रे ॥ २॥ फू लै फूली वन लतारे वाला । मधु मालती म हकाई रे ॥शालिप्रमुष सऊधाननीरे वाला। निपजी रास सवाई रे ॥३॥ नारकी जीवें नरकमारे वाला। दणइक साता पाई रे ॥ सबजन मन हरषित नयोरे वाला। नूमंझल बविबाई रे॥४॥शुजदिन शुनमजरतघकी रेवाला । शुनग्रह शुनपल आई रे ॥ जन्मथ यो जिनराजनोरे वाला। प्रगटीपूर्व पुन्याई रे ५॥ पुष्पवर्षागुलाबजलबर्षाकरें।
॥ दोहा सोरठो॥
-
--
-
-
-
For Private And Personal Use Only