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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५२ www.kobatirth.org ॥ नवपदपूजा ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) जम्नं जरा दुरक निवारगाणं ॥ २ ॥ निजा नादि कर्माष्टके । य करी नें । जरा मृत्यु जन्मादि दूरे हरी नें । स्थिता सर्व लोकाग्र जागें विशुद्धा ॥ चिदानंद रूपा स्वरूपें प्रसि झा ॥ ३ ॥ निजानंत बोधादि युक्ता प्रदेशा | निराबाधता निर्वृता जे श्लेशा । निराकार साकार जावे महंता । जो ते प्रमोदे सदा सि संता ॥ ४ ॥ करी आठ कर्म दये पार पांश्या । जराजन्म मरणादि जय जेण वाम्या निरावर्ण जे प्रात्मरूपें प्रसिद्धा । थया पार पामी सदा सिद्ध बुझा ॥ ५ ॥ त्रिनागोनदेहा वगाहात्म लेशा । रह्या ज्ञान मय जात वर्णी दि देशा ॥ सदानंद सौख्या श्रिता जोति रूपा ॥ अनाबाध पुनर्नवादि स्वरूपा ॥ ॥ ढाल || सकल कर्म मल दय करी । पूरण शुद्ध स्वरूपो जी छच्या बाध प्रभुतामई। छात म संपति पोजी ॥ सकल० ॥ १ ॥ For Private And Personal Use Only ॥ त्रूटक ॥ जेनूप शतम सहज संपति । शक्तिव्यक्ति पणे करी स्वद्रव्य क्षेत्र स्वकाल जावें । गुण
SR No.020404
Book TitleJin Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Gani
PublisherRushi Nankchand
Publication Year1933
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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