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॥ बगेटी पदनव०॥
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करम निकाचित क्षय ऊवें । ते तप ने पर नावें रे। लवधि अठावीस ऊपजे । अष्ठ म हा सिध पावें रे २० ॥ ३॥ एहवो तप पद ध्यावतां । पूजंतां चित चाहेरे। अक्षय गति निर्मल लहै । सऊ योगिंद सरा है रे॥ अ०॥४॥
॥श्लोक ॥ हिया द्वादशधा निलं । पूते पत्रे तप श्चयं निस्थापयामि नक्त्यात्र । वायव्यांदि शिशर्मदं ॥ १ ॥झी सम्पक तपसे नमः ।
॥ इति तप पद पूजा ॥
॥ श्थ कलश ॥ इम नव पद ध्यावे। परम आनंद पावे नव नव शिव जावे । देव नर नव पावे । ज्ञान विमल गुण गावे । सिछ चक्र प्रनावे । सऊदुरित समावे । विश्व जयकार पावे ॥
॥ अथ तवन उपरको कला ॥ अरिहंत सिछ शाचार्य उवकाय साधु दंसण नाणए । चारित्र तप नवपद थकी इहां सिझ चक प्रमाणए। श्रीपाल राजा सु
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