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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ बगेटी पदनव०॥ - करम निकाचित क्षय ऊवें । ते तप ने पर नावें रे। लवधि अठावीस ऊपजे । अष्ठ म हा सिध पावें रे २० ॥ ३॥ एहवो तप पद ध्यावतां । पूजंतां चित चाहेरे। अक्षय गति निर्मल लहै । सऊ योगिंद सरा है रे॥ अ०॥४॥ ॥श्लोक ॥ हिया द्वादशधा निलं । पूते पत्रे तप श्चयं निस्थापयामि नक्त्यात्र । वायव्यांदि शिशर्मदं ॥ १ ॥झी सम्पक तपसे नमः । ॥ इति तप पद पूजा ॥ ॥ श्थ कलश ॥ इम नव पद ध्यावे। परम आनंद पावे नव नव शिव जावे । देव नर नव पावे । ज्ञान विमल गुण गावे । सिछ चक्र प्रनावे । सऊदुरित समावे । विश्व जयकार पावे ॥ ॥ अथ तवन उपरको कला ॥ अरिहंत सिछ शाचार्य उवकाय साधु दंसण नाणए । चारित्र तप नवपद थकी इहां सिझ चक प्रमाणए। श्रीपाल राजा सु - - For Private And Personal Use Only
SR No.020404
Book TitleJin Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Gani
PublisherRushi Nankchand
Publication Year1933
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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