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॥ बोटी नवपद०॥
॥ अथ तपपद पूजा ॥
॥दोहा॥ कर्मकाष्ठ प्रतिजालवा। परतिख अगनि समान । ते तपपद पूजोसदा । निरमल ध रियेध्यांन ॥ १॥
॥बंद ॥ कम्महमन् मूलन कंजरस्स । नमो रति छतवो नरस्स । त्रिकालिक पणे कर्म कषाय टाले । निकाचित पणे वांधिया तेहवालें । कह्यो तेह तप वाह्य शन्यंतर दुलेदें। द मा युक्ति निहेतु दुान दें। ऊवें जास महिमा थकी लब्धि सिछि । श्वांछ कपणे कर्म शावरण शुछि। तपो तेह तपजे महा नंद हेतै। जवें सिधिसीमंतिनी निज संकेत
॥ढाल ॥ निज इच्छा अवरोधीये । तेहिज तप जिन नाख्योरे। वाह्य शल्यंतर नेदथी छाद श नेदे दाख्योरे ॥ १ ॥ अनुपम तप पद बंदीये क० । आं० । तदनव मोक गामीप णो । जाणे पिण जिनरायारे। तप कीधा प ति शाकरा । कुत्सित करम खपायारे अ०॥२
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