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॥ बोटी नवपद०॥
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॥बंद ॥ सुत्तत्यविस्थारण तय्यराणं । नमो नमो वा यग कुंजराणं । नहीसूरि पिणसूरिगुणनें सु हाया । नमुं वाचकात्यक्त मद मोहमाया।व लीहादशांगादि सूत्रार्थ दाने ।जिके सावधा ने निसछानिमाने । धरै पंचने वर्गवर्गित गु णौघाः प्रवादी द्विपोच्छेदनेतुल्यसिंहा । गुणी गच्छ संधारणे स्तंननूता। उपाध्याय तेवंदिये चित् प्रसूता ॥ १ ॥
॥ढाल ॥ द्वादशांगी वांणी वदें। सूत्र शरथ विस्ता रैरे। पंचवरग गुण जेहना । सुमति गुपति नित धारै रे ॥ १॥ श्रीउवझाया वंदीये क० आं० ॥ दायक शागम चावना । नेद नावयु त सारी रे । मूरखकुं पंफित करै। जगतजंतु हित कारी रे ॥२॥ शीतल चंद किरण समी वांणी जेहनी कहियें रे। तेउवकाया पूजतां। अविचल सुखका लहीये रे श्री०॥३॥
॥ श्लोक ॥ छादशांग श्रुता धारान् । शास्त्राध्ययन तत्परान ॥ निवेशयाम्युपाध्यायान्। पवित्रे
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