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॥ अष्ट प्रकारी॥
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स ॥२॥ ठोकतांनोज्य परनावत्यागे नवि जना निजगुणैनोज्य मांगें अमनणी अमतj सरूपन्नोज्य शपज्योतातजीजगतपूज्य ३ ॥ सकल पुल नझीपरम० नैवेदा० यजामहे.
॥दोहा॥ पक्षविजोरुं जिनकरे ठवतां शिवपद देह सरसमधुररस फलगिणै येहजिन नेटकरेह श्रीफल कदली सुरंगी नारंगी शंबासार अं जीर बंजीर दाफिम करणा षटबीज सफार मधुरसुस्वादक उत्तमलोक शनंदित जेह व रणगंधादिक रमणिक यऊफल ढोकै तेह २ फलनरै पूजतां जगतस्वामी मनुजसुरनवेलहै सफलपांमी सकलमुनि ध्येयगत नेदरंगे ध्या वतां फलसमाप्ति प्रसंगे ॥ ३ ॥ कटुककर्म झीपरम० फलं यजामहेस्वाहा ॥
॥दोहा॥ इम थाविध जिन पूजतां विरचैजेथिर चित मानव नव सफलोकरै बाधैसमकि तबिन ॥१॥ अगणित गुणगण शागर नागर बंदितपाय श्रुतधारी उपकारी श्रीज्ञानसागर उवकाय
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