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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०० ॥छारती। तिश्रुति शवधि शमनपर्यव। केवल काठेस ब दुखदंदा जय० ॥२॥ नवजल पार उता रण कारण ॥ सेवोध्यावो लविजनवंदा जय० ३॥ शिवपुरपंथ प्रगटएसीधा। चौमुखलार्ष श्री जिनचंदा जय० ॥ १ ॥ शविचल राज हीयासैपावें। चिदानंद निजतेजश्मंदा जय० भारति ज्ञानदि० अनुभव ॥ इति आरती ॥ ॥ अथ नाषा अष्टप्रकारी पूजा ॥ गंगामागध कीरनिधि अपधि मिश्रितसार कसुवासित शुचिजलें । करोजिन सात्र उ दार ॥ मणि कनकादिक शुविधकरी नरी कलस सफार । शुनरुचि जेजिनवरन्हवें तसु नहि दुरित प्रचार ॥ २ ॥ मेरुसिखर जिमसु वर न्हवण शमान । करता बरता निजगुण समकित वृद्धि निधान ॥ ३ ॥ हर्ष जरि अप्सरावंद शावें । स्नानकर एमशासी सनावें । जिहांलगे सुरगिरी जंबुदीवो ॥ श म्हतणा साध्यजीवा तुजीवो ॥१॥ लोक विमल । नही परमपरमात्मने थ नंतानंत ज्ञानशक्तये जन्मजरामृत्यु निवारणा य श्रीमजिनेंद्राय जलं यजामहे स्वाहा ॥ mix For Private And Personal Use Only
SR No.020404
Book TitleJin Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Gani
PublisherRushi Nankchand
Publication Year1933
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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