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॥ विं० स्था० पू० ॥
(५)
क थविर | लोकोत्तर अणगार | पंचम पद में जानिये । द्वितीय थविर अधिकार ॥ २ ॥
॥ राग सारंग ॥
नित नमिये थविर मुनी सरा । पंचमहा व्रत धारक वारक । कुमति जगत जन हित करा नि० ॥ १ ॥ संयमयोगें सीदत बालक ग्लाना दिक सऊ मुनिवरा । एहनें उचित सहा य दियते । वारे एहनां दुखजरा नि० ॥ २ ॥ पर्यय वय श्रुत त्रिविध ए धविरा । वीस स साठ समोपरा । वयधर समबया धिक पा ठक | एह थविर गुण आगरा नि० ॥ ३ ॥ तीजे अंग कह्या दस थविरा । रत्न त्रयीनां गुण धरा । ते इह निर्मल नाव ग्रहिया न विक सरोज दिवाकरा नि० ॥ ४ ॥ कीरजल धिराम प्रतिहि गंजीरा । सुरगिरि गुरु धीर
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ज धरा । वारणागत तारणता धारा । ज्ञान विमल जल सागरा नि० ॥ ५ ॥ श्रुत तप धीरज ध्यान धरणतें । दुव्यादिक ज्ञाता व रा । तेह स्वरूप रमण कह्या थविरा । नही य धवल केशांकुरा निं० ॥ ६ ॥ एह थविर पद सेवी जगते । पदमोत्तर बसुधेसरा । पद