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॥ विं० स्था० पू० ॥
श्री जिन हरखें तिण लहियो । मुनिवर कुमुद निसाकरा नि० ॥ ७ ॥
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॥ कला ॥
सम्मत संयम पतित जविजन । यतिहि थिर करता जला । अवगुण दूषित गुण विभूषित | चंद्र किरण समुज्जला । अष्टाधि कादवा सहस शीलांग । रथ रुचिर धारा धरा नव सिंधु तारण प्रवर कारण । नमो थविर मुनीसरा ॥ ८ श्री स्थविराय नमः ॥
॥ इति पंचमपदे स्थविर पूजा ॥
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॥ दोहा ॥
पूवरनाण दरसण चरण धारक यतिधूम सारे ॥ समितिपंच त्रिण गुपतिधर । निरुपम धीरज धार ॥ १ ॥ चरण कमल जेहनां नमें ग्रहनिशि सुरनर राय ॥ जनतागिरि दारण कुलिना । जय जय सिरि उवकाय ॥ २ ॥ ॥ राग भैरव पंचवरणी अंगीरची० एचाल ॥ नावधरि उबकाया वंदो विजयकारी | श्री उवकाय परमपद बंदी | लहो जिनपद छतिशय धारी जा० ॥ १ ॥ कुमती मदतर