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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०१ ॥वि० स्था० पू०। (६) नंजन सिंधुर । सुमतिकंद घन अवतारी ॥ अंग दुबालस नणे नणावें। शिष्य नणी चि तहित धारी ना० ॥ २ ॥ सकल सूत्र उपदे श दियण ते वाचक शति विमलाचारी ॥ नव तीजै अमृत सुख पावें । सुर शसुरेंद्र मनोहारी ना० ॥३॥ हय गय वृष पंचान न सरिखा । करमकंद वरतर वारी । वासु देव वासव नृप दिनकर । विधु झारि तु लाधारी ना०॥ ४ ॥ जंबू सीता नदि कांच न गिरि। चरमजलधि नेपम नारी। एनपम बऊतनी जाणों उतराध्ययनें कही सारी ना० ॥ ५॥ श्मल पंचविंशति गुण मणि निधि सकल नवन जन उपगारी । संशय तिमिर हरण वासर मणि । पाप ताप आ तप वारी ना० ॥६॥ प्रवर संख पय नरि यो सोहै। तिमए ज्ञान चरण चारी महेंद्र पाल पाठक पद सेवी । लहियो जिन पद विजितारी ना० ॥७॥ ॥ काव्य ॥ सहोहि बीजं कुर कारणाणं । णमो णमो वायग वारणाणं । कुबोहि दंती हरिणेसरा - For Private And Personal Use Only
SR No.020404
Book TitleJin Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Gani
PublisherRushi Nankchand
Publication Year1933
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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