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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१) वि० स्था० पू० ॥ १०१ ता। मोहता हां० ॥ नवियण ने पकिवोह ता श०॥ ३ ॥ पंचाचार विराजिता रे वाला स जलजलद जिम गाजता ॥ गाजता हांहो० सूरि सकल सिर बाजता शा०॥४॥ उप देशामत वरसतारे वाला । दुरित तापसज निरसिता ॥ निर० हांहो० ॥ परमातम पद फरसता शा०॥ ५॥ धरम धुरंधरता धरा रेवा० जग वांधव जग हितकराहि० हांहो स्वपर समय बिउ गणधरा शा०॥ ६ ॥ प द श्रीजिन हर ग्रह्योरे वाला सूरीसर पद तप वह्यो ॥ तक हांहो० ॥ पुरुषोत्तम नृप शिवलह्यो ॥ शा०॥ ॥काव्य ॥ कुबादि केली तरु सिंधुराणं । सूरीसराणं मुनिबंधुराणं ॥ धीरतसंतजिय मंदराणं । ण मो सया मंगलमंदिराणं॥ १ ॥ नझी श्रीया चार्यन्योनमः ॥ ४ चतुर्थपदे आचार्यपूजा ॥ ॥दोहा॥ विविध थविर जिनवर कह्या ॥ दुव्य नाव परकार । लौकिक लोकोतर वली। सु निये नेद बिचार ॥१॥जनका दिक लौकि For Private And Personal Use Only
SR No.020404
Book TitleJin Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Gani
PublisherRushi Nankchand
Publication Year1933
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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