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वि० स्था० पू० ॥
(३)
जगदीसर जिनप रमाउर आनरणं प्र०॥८॥
॥काव्य ॥ अणंतसंसुछगुणायरस्स । दुरकंधया सग्ग दिवा यरस्स ॥ अणंतजीवाण दयागिहस्स। णमोणमो संघचउनिहस्स ॥ १ ॥ नझाश्रीप्र वचनाय नमः ॥ इति तृतीयपदे श्रीप्रवचन पूजा ॥३॥
॥दोहा॥ पदचतुर्थ नमियेसदा। सूरीसर महाराज सोहम जंबू सारिसा । सकल साधु सिरताज १॥ सारण वारण चोयणा। पमिचोयण कर तार ॥ प्रवचनकज विकसायवा। सहस कि रण अवतार ॥२॥
॥राग रामगिरी गात्र लूहैं । आचारिज पद ध्याइयेरे वाला। तासवि मल गुण गाइये॥पाइये हांहोरे वाला पाइये जिनपति पद जगशिर तिलो रे शा० ॥१॥ जिन शासन नजुवालतारे वाला। सकलजी व प्रतिपाल तां॥ पालतां हां० ॥ चरण क रण मगचाल तां श० ॥ २ ॥ सूरी सकल गुण सोहता रेवाला । सुरनर जन मनमोह
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