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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ पां०क०पू०॥ १८१ - - - ॥दोहा॥ तीनज्ञान अतिशय धरैं। शतिशय कला सुधाम ॥ सुर सुसंग कीझातिशय । अति शयगुण शनिराम ॥ १ ॥ ॥ पंचवरणी अंगीरचीकु० एचाल ॥ वरणीन जातीरे व०। जिनजीकी सोनाव० न जाती ॥ चित्रजात नर सुरासुर निरषत। शोर न असोजगन्नाती जि०॥१॥ अनंत ग णेंकरि सोनित प्रनुजी । सुछ संवेग सोवन जाती ॥ शिव मारग शुध सेवत निसदिन । पुन्यपुरुष पायाराती जि० ॥२॥ परउपगारी परम पुरुषोत्तम । शदनुत अनुनव रस पा ती ॥ कामलोग वरविबुध प्रकारें। प्रातनये सुखसंघाती जि० ॥३॥ जसु जसख्यात प्र गट त्रिनुवनमें । कुल राजन्योत्रम जाती॥ध नरतीन नुवनके साहिब । श्यामहमारो वर गाती जि०॥४॥ इंद अहो नि नावन नावत । देख दरस शति हरषाती॥ दुन्दुनि प्रमुख वाजिन वजतनित । सुरवधु वनमंग लगाती जि० ॥ ५॥ ही प० पुष्प वासः प चढावें॥ - --- - - - - - For Private And Personal Use Only
SR No.020404
Book TitleJin Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Gani
PublisherRushi Nankchand
Publication Year1933
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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