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॥पां०क०पू० ॥
(१)
चरण सेवना ॥विवधकारीहेअइयो विविध कारी आ० । एक जिनधर्ममय परमलीनता दीनतासकलतज रजनिवारीहे थई०॥१॥
आत्मगुणअंतरातमपणैवृत्तितातजिय बहिरा त्मजिन आंणधारी हेश आ ॥२॥ सुझसम्य क्तगुण संपदा निज लही। सहीय शुध धर्मस चिनाससारी हे०अ०।विविधमणिरत्ननीजो तिझगमगजगें । चंद्रिका नासनासितकरारी हे १० सित०॥३॥ प्रवर कुलशुशाजन्य प्रमुखेमुदा । आयुकर बंध नर नव सुधारीहे १० न० ॥ गर्भ अवतार निजमात उदरेल है । बालशुजलग्न शुनयोग चारीहे अ० । योगचारी ॥४॥
॥दोहा॥ शुनदिन शुन्न मजरत घझी। शुन उच्चग्र हचार ॥ देवलोक चवि प्रनुलहै । मातुउ दर अवतार ॥१॥ संदरवरप्रासाद महि। मध्यनिशा जिनमा त॥ स्वप्नदेख सुखसेजमें। जाग्रत शति हरषात ॥२॥
॥ राग घाटाचैती॥
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