________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
४०
॥ सतरहलेदी ॥
(१२)
वर वारमी पूज में । कुसुम बादलिया फल । हरणताप सविलोकको । जान समा बजमूल ॥१॥
॥ राग नीम मलार गुंममित्र ॥ हेमेघबरसैभरी । पुष्फ वादलकरी जानु परिमाण करि कुसुम पगरं । पंच वरण वन्यो विकच शुमुकरवन्यो । अधर तैनही पीक पसरं मे० ॥ १ ॥ वास महकै मिलै । नमर जमरीनिले । सरसरंगै तिण दुखनिवारी । जि नप आगैकरै । सुरपजिम सुखबरें । वारमी पूजतिण परिशगारी मे० ॥ २ ॥
॥रागनीम मलार ॥ प्फवादलीया वरसैसुसमां । योजन अ शुचिहर वरपै गंधोदकै । मनोहर जानु स मा पु० ॥ १ ॥ गमन शगमन कीपीर नही तमु । इह जिनको शतिशय सुगुण । गुंज ति२ मधुकर इमनणे मधुर वचन जिनगुणथु णें । कुसुम सुपरि सेवाजोकरै । तसु पौरन ही सुमणै पु० ॥ २ ॥ समवसरण पंचवरण शधोवंत । विवुधरचै सुमना समा। वारमी पूज नविक तिमकरें । कुसुम विकसी हसी
For Private And Personal Use Only