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॥ सतरहलेद।।
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ल ॥ महकै परिमल मह महा। इग्यारमी फूल अमूल ॥ १ ॥
॥राग रामगिरी कौतकिया ॥ कोज अंकोल रायबेलि नव मालिका। कुं द मचकुंद वर विचिकलूए। हे तिलक दमण कदलं मोगरा परिमलं । कोमलं पारधि पा मलूए। हे प्रमुख कसुमैं रचै त्रिनुवन कुं रुचै। कुसुम गेह विच तोरणूंए । गुच्छ चंदोदयं डूं बक उन्नयं। हे जालिका गोख चितचोरणूं ए।
॥राग राम गिरी ॥ मेरोमन मोह्यो माईरी । फूलघरै आणंद फिलै । आसत उसत दामवघारी मनोहर। देखत तबही सबदुरित खिलै फू०॥ १ ॥ कु सुम मंमित थंनगुच्छ चंद्रोदयं । कोरणि चा रु विणाण सके की । इग्यारमी पूज वणीहें रामगिरी। विवध विमाण जैसे उपरिजंजैकी
॥ इति फूल घर पूजा ॥ ११ ॥
॥ अथ पुप्फवर्षा पूजा ॥
॥ दोहा मलारमें॥
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