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१३)
॥ सतरहनेदी
११
उच्चरै तसुनीमबंधण अहराजवें। जै जिननमा पु० ॥३॥
॥ इति पुष्पवर्षा पूजा १२ ॥
॥ अथ शष्ट मंगलीक पूजा ॥
॥ दोहा राग कल्याणमें ॥ तेरमि पूजा श्वसरें मंगल अष्ट बिधान । युवति रचै सुमता सही। परमानंद निधान १
॥राग वसंत ॥ शुतुल विमल मिल्या । अखंझ गुणै नि ल्या । सालि रजत तणा तंदुलाए । लषण समाजकं विच पंच वरणकं । चंद्रकिरण जै सा जजलाए । मेल मंगल लिखै। सयल मं गल अखै । जिनप शागे सुथानक धरै ए। तेरमि पूजाविध । तेरमि मन मेरे । अष्ट मंगल अष्ट सिटि करे ए। अतल०॥ १ ॥
॥राग कल्याण ॥ हांहो पूजा बणी तेरी रसमै ॥ षष्ठ मंग ल लिखै । कुशल निधान हैं। तेज तरण के रसमै हां०॥ दर्पण नद्भासण नंदावर्त्त पूर्ण
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