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॥ सतरहलेदी॥
(१४)
कुंन । मब्युग श्रीवब तासुमैं। वर्धमान स्व स्तिक पूज मंगल की। शानंद कल्याण के सुख रस मैं हा० ॥२॥ • ॥ इति अष्ठमंगलीक पूजा ॥ १३॥
॥ अथ धूप पूजा ॥
॥दोहा॥ गंधवटी मृगमद अगर । सेलारस घन सार । धर प्रन्नु आगल धूपणा । चउदमिय रचा चार ॥१॥
॥राग वेलाउल सवावा ॥ कृष्णागर करचूर । सोगंध पांचेपर । कं दुरुक सेलारस सार । गंधवटी घनसार । गं धवटी घनसार । चंदन मगमदा रस नेलिये। श्रीवास धूप दशांग अंबर सुरनि वऊ व्य नेलिये। वेरलिय दंकनक मऊं। धूप धा णो करधरें। नव्यवृत्ति धूप करंति नोगं । रो ग सोग अशुन हरें ॥१॥
॥राग मालवी गौळी ॥ सब अरति मथन मुदार धूपं । करत गंध
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