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(१९)
वि० स्था० पू०॥
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अपार । अनंतशमल गुणरयणाधार न० ॥ जवनय जलनिधि तरण जिहाज । निसुणमग ननई सकलसमाज न० ॥ ४ ॥ लवकोटील गें तपकरिजीव । शज्ञानीकरें जितनीसदीव न०॥ कर्मनिरजरा तितनीहोय । ज्ञानीके इकङ्कणमेंजोय न० ॥५॥ एकसहस कोमि बसयकोमि । चतुरतीस कोकि अक्षरजोकि शसठिलापरु सातहजार । अफसय इसी य प्रमित चित धार न०॥६॥ इतने वर नसें इकपदहोय । एकश्लोकके गणितएजो य न० ॥ इकपदको परिमाण एजान । इण पद से आगम परिमाण न०॥ ७ ॥ तीन कोकि शुस अफसठि लाख । सहस बैयालि स एपद नाख न०॥ इतनेपदसें अंगइग्यार केरीगणना नविचितधार न० ॥८॥ बारम दृष्ठि वादकोमान । असंख्यातपदको पहिचा न न०॥ इनको चवदपूरबइकदेश । एनों पा रलह्योहें गणेश ज० ॥ ९॥ एहदुवालस अंग उदार। एहनीजइयें नितबलिहार ज० ॥ ए हनी च्यनाव बजानक्ति । करियेधरिये जि नपदयुक्ति न० ॥१०॥ रत्नचू नृपसुखमा
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