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॥वि० स्था०पू०॥
(७९)
विखंफणस्स ॥ मुतीउपादान सुकारणस्स । णमोहिनाणस्स जसोधणस्स ॥८॥ नझी श्री ज्ञानाय नमः ॥ इति अष्ठादश पदे अपूर्व श्रुत ग्रहण रूपा ज्ञान पूजा ॥ १८ ॥
॥दोहा॥ पापताप संहरणहरि । चंदनसम शु तसा र ॥ तत्वरमण कारण करण । प्रशारण शर ण उदार ॥१॥ एगनवीस पद में नजो। जिनवर श्रुतनीनक्ति॥इनपद वंदनसलहें। विमलनाण युतमुक्ति ॥ २ ॥ ॥ राग देसी ब्रजवासीकानतें मेरी ॥
॥ गागरढोरीरे एचाल ॥ नविजन चैतनक्ति चरणशरण उरधरिये रे । ए त्रु तनक्ति सुमंगलमाल ॥ विमलकेवल कमलावरमाल भवि० ॥१॥ सकलव्य ग णगुणपर्याय। प्रगटकरण एन त मनभाय भ० शतुलं अनंतकिरण समवाय । धरणतरणगण समकहिवाय न० ॥२॥ एव तकुमति युवति नेसंग । अगणित रमणतणो करेंनंग ज० ॥ श्रथैभाष्यो श्रीजिनराज । सूत्रगणधर मुनि सिरताज न० ॥३॥ एश्रुत सागर अगम * आज पायो रे उछाह जिवडा नाच निनन्द भागे।
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