________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(१८)
वि० स्था० पू० ॥
१२५
रुता । घोर तपें करि होय ॥ तत अनंत गुण शुरुता । सुज्ञानी की जोय ॥२॥ ॥दिलदारयार गबरू राणूं रे हमारा घट में।
जिन चंद नाम तेरा । महाराज ज्ञान तेरा ॥ जीत रे बिकट नव नटनें। ज्ञान धरणा ॥ वितरे जिनेंद्र चरणा । करेस र्व कर्म हरणा जी० ॥१॥ जग में महोप कारी । जय सिन्धु वार तारी॥ कुमतांधता विदारी जी० ॥२॥ सऊनावनों प्रकासी। परम स्वरूप नासी । परमात्म सनवासी ॥ ३॥ बिनु हेतु विश्व बंधू । गुण रत्न राशि सिंधू ॥ समता पियूष अंधू जी०॥४॥ स्या छाद पद गाजे । नयसप्त से विराजे॥ एकां त पहनाजे जी० ॥ ५ ॥ लहि तीर्थपाव तारा। इनसें जिनेंद सारा ॥नविके किया उधारा जी० ॥६॥ पद सेवि ए नरिंदा । नये सागरादि चन्दा ॥ जिन हर्ष केसमंदा। जी०॥७॥
॥काव्य ॥ शुलविया मंझल मंझनस्स। संदेह संदोह
For Private And Personal Use Only