________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१२८
॥ वि० स्था०पू०॥
(२०)
-
धार । जिनश्रुत नक्तिकरी हितकार न०॥ नये जिनहरष परम पददाय । जिनके सुरन रपति गुनगाय न० ॥११॥
॥काव्य ॥ शन्नाणवल्ली वणवारणस्स । सुबोहिबीज कुरकारणस्स ॥णंतसंसुछ गणालयस्स। ण मोदया मंदर सच्छयस्स ॥ १२ ॥ झी श्री श्रुताय नमः १९ इति एकोनविंशतिपदे श्रु तपूजा ॥ १९॥
॥दोहा॥ प्रावचनी १ अरुधमकथी। वाद ३ नि मत्ती १ जाण ॥ तपसी ५ विदा ६ सिझ७ पुन । कवी ८ एहमुनिनाण ॥ १ ॥ लावती र्थ के प्रनुकह्या । प्रानाविक एअष्ट ॥ तीर्थप्र जावन जेकरें । तेफललहें विशिष्ट ॥२॥
॥राग धन्यासी ॥ . तीरथ परत्नावन जयकारा । जिनसे नव सागर जल तरिये ॥ ते तीरथ गुण धारा । ती० ॥१॥ जिनके गणधर तीरथकहिये। बलि सऊ संघ सुखकारा ॥ एह महा तीरथ पहिचानो । बंदिलहो नवपारा ती० ॥२॥
-
For Private And Personal Use Only