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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२०) ॥ वि० स्था० पू०॥ १२९ - - अफसठि लौकिक तीरथ तजिकरि । जलो कोत्तरसारा ॥ व्यत्नाव दोयनेद लोकोतर। थिरजंगम नयहारा ती० ॥ ३॥ पुंगरीक प रमुख पंचतीरथ । चैत्यपंच परकारा॥ एवर तीरथ थावरकहिये। दीठांदुरित विदारा ती० ४ ॥ श्रीसीमंधर प्रमुख वीसजिन। विहरमा न नवतारा ॥ दोयकोमि केवलि विचरंता। जंगमतीर्थ उदारा ती० ॥५॥ संघचतुर वि ध जंगमतीरथ । जिनशासन उजियारा ॥ वरश्चनंत गुणजूषण जूषित । जिनकुं नमत जिनसारा ती० ॥६॥ एतीरथ परनावन करिये । शुन्न नाबन शधारा ॥ शिवकज जलविंशति तमपदकी। जाउं प्रतिदिन बलि हारा ती० ॥ ७ ॥ एतीरथ परनावन करतो मेरुप्रन विकारा॥ पदजिनहरषलहीने तरि यो। नवअंनोधि अपारा ती० ॥८॥ ॥काव्य ॥ महामहानंदपदप्रदाय । जिनश्रुतज्ञानपयो नदाय ॥ जगत्रया धीश्वरवंदिताय । नमोस्तु तीर्थाय सुनंददाय ॥१॥हात्रीतीर्थायनमः इतिविंशतितमपदेतीर्थप्रनावनापूजा॥ २० For Private And Personal Use Only
SR No.020404
Book TitleJin Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Gani
PublisherRushi Nankchand
Publication Year1933
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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