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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org . १३० ॥ विं० स्था० पू० ॥ (२०) ॥ सुणि चतुरसुजाण परनारीसुं प्रीति ॥ ॥ कबजंन कीजिये एचालमे ॥ चितहरषधरी । नुनवरंगें वीसपरमपद वंदिये ॥ शिव रमणिबरी । केवल सखीयस हायकरी चिरनंदिये ॥ ० ॥ एवीसचरण छवशरणचारणा । चिरसंचित दुरित तिमिरह रणा । नितचित ए पदसमरण धरणा चि०१ एपदसमरण जिन चितधरिया । तरिया तर सें तरें नवदरिया । सदनंत नविकसऊ नय हरिया चि० ॥ २ ॥ एपद गुणसागर मनुहा रा । वरणनतरणीये बहारा | इंद्रादिकसु रनर नलह्योपारा चि० ॥ ३ ॥ एपदच्छतिशय महिमाधारा । अमृत पद कमला जरतारा ॥ जिनचंदानंद घन पढ़कारा चि० ॥ ४ ॥ जि नहरष सुरिंदके शिव करणा । चंद्रामल गुण विंशतिचरणा । ऊइज्यो मनुयरज ए अवधर णा ॥ ५ ॥ इति श्रीसमस्तविंशतिपद स्तुतिः ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ कलना ॥ ए बीसथानक भुवनबंदन घ निकंदन जानिये विबुधेंद्रचंद्र नरेंद्र बंदित पद जिनें द बखानिये ॥ ए बीसपद जवजलधि तारन For Private And Personal Use Only
SR No.020404
Book TitleJin Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Gani
PublisherRushi Nankchand
Publication Year1933
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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