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॥ सतरहलेदी ॥
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तपत वुझी मेरे तनकीहो ॥ पू० १॥ प्रनुकुं विलोकि नमिजतन प्रमार्जित । करत पखा ल शुचिधार वनकी हो। न्हवण प्रथम निजत्र जिन पुलावति पंककुंवरष जैसे घनकी हो ॥पू २॥ तरण तारण नव सिंधु तरणकी मंज री संपदफल बरधनकी। शिवपुर पंथ दि खावण दीपी । धूमरी श्रापद बेल मरदन की हो ॥३ पू० ॥ सकल कुशल रंगमिल्योरी सुमतिसंग। जागी सुदिसा गुलमेरे दिनकी ॥ कहै साधुकीरत सारंगनार करतां । आसफ लीमेरे मनकीहो ॥ पू० ४ ॥
॥ इति प्रथमन्हवणपूजा १ ॥
॥राग राम गिरीमें विलेपनपूजा॥ गात्रलूहें जिन मनरंगसुंहोदेवा गा० । स खरसुधूपित वाससुं ॥ वाससुं हारेदेवा वास सुं । गंधक सायसुंमेलिये ॥ नंदन चंदन चंद मैलीय रेदेवा ।नं। मांहे मृगमदकुंकुम नेली ये । करलीये रयणपिंगा णीकचोलीये ए० ॥ पग जानु कर पंसिरै रे। लालकं ठउर उदरं तरै दुषहरै हारेदेवा सुखकरै । तिलकनवे अंग
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