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२८
॥ सतरहनेदी ॥
कीजिये ॥ दूजी पूजा अनुसरै रे श्रावक । हरि विरचै जिम सुरगिरै ॥ तिमकरै जिणपर जन मन रंजीये ॥ २ ॥
॥ राग ललितमें दोहा ॥
करऊ विलेपन सुखसदन | श्री जिन चंद शरीर ॥ तिलक नवे अंगपूजतां । लहैं नवो दधितीर ॥ १ ॥ मिटै तापतसुदेहको । परम शिशिरता संग ॥ चित्त खेद सवि उपशमें । सुषम समरसी रंग ॥ २ ॥
॥ राग बेलाउल |
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(२)
विलेपन कीजे । श्री जिनवरअंगे जिनवर अंगसुगंधै होवि० कुंकुम चंदन मृगमदजक ईम । गरमिश्रित मनरंगे हो वि० ॥ १ ॥ पग जानूकर खंधै सिर । जालकंठ उरउदरं तरसंगै । विलुपति घमेरो ॥ करत विलेपन तपत ऊति जिम चंगेंहो वि० ॥ २ ॥ नव अंगनवनव तिलक करतही । मिलत नवेनि धिचंगें ॥ कहैसाधु तनु सुचिकरो । सुललित पूजा जैसे गंगतरंगें हो वि० ॥ ३ ॥ ॥ इति विलेन पूजा २ ॥