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(३)
॥ सतरहलेदी ॥
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॥ अथ वस्खयुगलपूजा दोहा ॥
वसनयुगल उजल विमल । शारोपें जि नअंग ॥ लान ज्ञान दर्शन लहै । पूजा तृतीय प्रसंग ॥१॥
॥रागगोडी॥
कमलकोमलघनंचंदनंचरचितं । सुगंध ग | अधिवासियाए ॥ कनक मंफितहयै लालप लवशुचि । वसनजुगकंतशतिवासियाए । जि नप उत्तम अंगै सुबिधिशकोयथा। करियपहि रावणीढोइयेए । पाप लूहणअंगलूहणो देवनें वस्त्रयुगपूजमलधोइयेए ॥ १ ॥
॥रागवैराकी ॥ देव दुष्य जुग पूजा बन्यो है जतग गुरु । देव दुख हर शब इतनों मागुं । तुहिज सबही हित तुंहीज मुगति दाता । तिण नमि २ प्रनु जी के चरण लागुं दे० ॥ १॥ कहै साधु तीजी पूजा केवल दसण नाण । देव दुष्प मिसदेऊ उत्तम वागु । | श्रवण अंजलि पुट सुगुण अमृत पीता सवि
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