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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ नवपदपूजा ॥ - - ॥ दोहा ॥ गुण अनेक जग जेहना । सुंदर सोनित गात्र ॥ उवकाया पद अरचिये। अनुन्नव रसनो पात्र ॥१॥ ॥गाथा ॥ सुन्तत्य वित्यारण तप्पराणं । णमो णमो वायग कुंजराणं । गणस्स संधारण सायराणं सवप्पणा वजिय मच्छराणं ॥ १ ॥ महा सूत्र सिझांत शुछे करीने । पढावें सुशिष्यां अनु ग्रह धरीने । करें पूजना लोक मध्ये तदीया स्फुरंती दृशी जास शक्ति स्वकीया ॥२॥ गणे सारशुहिं सहर्ष करंता । मुनी वर्ग मध्ये प्रमादं हरंता । पचीसे गुणे युक्तदेहा सुर्या । सदा वंदिये ते उपाध्याय पूर्या ॥ ३ ॥ नही सूरि पण सूरिगुण ने सुहाया । नमुं वाचका त्यक्त मद मोह माया । वली द्वादशांगादि सूत्रार्थ दाने । जिके सावधा ने निरुझा निमाने ॥ ४ ॥ धरे पंच ने वर्ग वर्गित गुणौधा । प्रवादी द्विपोच्छेदने तुल्य सिंघा। गुणी गच्छ संधारणे स्तंन नूता। उपा ध्याय ते वंदिये चित् प्रसूता ॥ ५॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020404
Book TitleJin Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Gani
PublisherRushi Nankchand
Publication Year1933
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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