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॥वि० स्था० पू०॥
(१३)
शुनध्यान किरिया हृदय धरिने। धूम स कल उरधार रे ॥ शातरौंदनी हेतुकिरिया । शशुन पणवीस वार रे सु० ॥ १ ॥ ज्ञानवंत अशस्त्रनटहैं। किया शस्त्र वतंसरे॥सुनटना णी कियाशस्त्रै । करयकम अरिध्वंस रे सु०२ ज्ञान सेती वदेशिवयदि । तेरमें गुणठाणरे॥ येकनाणे करि जिनेसर । किम न लहैं निरवा णरे सु० ॥३॥ जिनप शैलेशीकरण करि । चउदमें गुणठाण रे ॥ सरस संबरचरण करणे लहें पद निरवाणरे सु० ॥ ४ ॥ ये अनंतर अ मृतकारण । कह्यो जिनवर नाणरे ॥ सरवसं वरचरणकिरिया । नशिवइण विनुजाणरे सु० ५॥ येकनाणे इककियामें । नशिव वितरण शक्ति रे ॥ कहें जिनवर उन्नय योगें। लहन विजन मुक्तिरे सु० ॥६॥ गरलमिश्रित स रसनोजन । शगुन परिणति धाररे॥ अमृत संयुत तेहन्नोजन । रुचिर परिणति कार रे सु० ७॥ ज्ञानसहता तेमकिरिया । करिकरें निस ताररे ॥ ज्ञानविन किरियानदीयें। मनोमत फलसाररे सु०॥८॥ ज्ञान परिणत रमीकि रिया । तेहकिरिया साररे ॥ नयोहरि वाहन
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