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॥ चौ० जि० पू० ॥
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__ श्रीसुपार्श्व सुरतससमो । कामित पूरण काज ॥ नो नवियण पूजो सदा । बसुविध पूजसमाज ॥१॥ ॥ राग तेरीपूजावणीहें रसमें एचाल ॥
मेरी लगी लगन जिनवरसे मे० ॥ जैसे चंदचकोर नमरकी। केतकिकमलमधुरसें मे० एहसुपारस नए प्रनुपारस । गुणगणसमरण फरसे मे० । चेतन लोहपणो परिहरके । ऊ यलैकंचन सरिसे मे० ॥ २ ॥ एप्रनु करुणा करकुं धरिले । नर जिमकमल नमरसे मे०॥ जेजवि जिनपदलगनधरे तसु ॥ नहिलये म रन शसुरसें ॥३॥ मात टधवी तनुजात र नुभुति । समगुलकंचनसरिसें है ० ॥ हैं सिव चंद चित नितमेरो रहो प्रजुपदलय नरसे मे० नूझा परम० शनं० ज० सुपार्श्वजिने जलं० नैवे० यजामहेस्वाहा ॥ इति सातमीपूजा ॥७
॥दोहा॥ अष्ठमजिनपदपूजिये। बिबिधकष्टहरतार अष्ठसिछनवनिध लहै । जिनपूजाकरतार ॥ ॥रागमेघबरसेनरीपुष्पबाइलकरीएचाल॥ परमपदपूर्वगिरिराज परिउदयलहि। बि
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