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॥अष्टप्रकारी पूजा॥
॥राग बेलाउल ॥ इम पूजा नगरौं करो। शतम हित का ज तजी विनाव निज नावमां रमतां शिव राज इम०॥ १ ॥ काल अनते जे ऊवा । होस्य जेह जिणंद । संपइ श्री मंधर प्रनू । कवल नाण दिणद इम० ॥ २ ॥ जन्म म होच्छव इण परै । श्रावक रुचिवंत विरचे जिन प्रतिमा तणों। अनुमोद नखंत ॥ इम० ३॥ देव चंद जिन पूजनां । करतां नवनों पार । जिन पडिमा जिनसारखी । कही सूत्र मकार इम० ॥ ४ ॥ इति पदम् ॥
॥ इति स्नात्रम् ॥
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॥ अथ अष्ट प्रकारी पूजा ॥
विमल केवल नासन नास्करं । जगति जंतु महोदय कारणं जिनवरं बऊ मान ज लौघतः शुचिमनः स्नपयामि विशुख्ये ॥ १ न्ही परम परमात्मने अनंतानंत ज्ञान शक्तये जन्म जरा मृत्यु निवारणाय श्रीमजिनेंदाय जलं यजामहे स्वाहा ॥ १ ॥ जल पूजा ॥
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