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॥ स्नात्रपूजा ॥
तीस सोवनउवारी बाजतै वरनाद । सुरप ति संघ शमर श्री प्रनने । जननी ने सुप्रसा द । शणी थापी एम पयंपें । शम्ह निस्त रिया शाज । पुत्र तुमारो धणिय शमारो। तारण तरण जिहाज ॥ सो० ॥ ३ ॥ मात जतन करि राखज्यो एहनें । तुम सुत शम शाधार । सुरपति नक्ति सहित नंदीश्वर करै जिन नक्ति उदार ॥ सो० ४॥ निय नि य कापगया सव निर्जर। कहतां प्रनु गुण सार ॥ दीक्षा केवल ज्ञान कल्याणक इच्छा चित्त मकार ॥ सो० ५ ॥ खर तर गब जिन आणा रंगी राज सागर उवकाय । ज्ञान धर्म दीपचंद सुपाठक मुगुस तणे सुप साय ॥ देव चंद निज नक्तं गायो । जन्म महोच्छव बंद । बोध बीज अंकूरो उल स्यो । संघ सकल प्रांणद सो० ॥६॥
॥ इति स्नात्रम् ॥
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