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॥पूजा ॥
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॥ तीर्थ कमल वर उदक जरीने पुष्कर ॥
॥ सागर शावै ॥ एदेशी॥
पूर्ण कलश शुचि उदकनीधारा जिनवर अंगनामैं । शतम निर्मल नाव करतां ब धते शुन परिणाम ॥ श्च्यूतादिक सुरपति मजान लोक पाल लोकांत । सामानिक इंदा णी पमुहा इम शनिषेक करत ॥ पू० ॥
गाथा ॥ __ तब ईशाण सुरिदो सच पत्नणेइ करिस सुपसाने। तुम अंके महनाहो खिणमित्तं शम्ह शप्पेह ॥ तासकिंदो पनणइ । साह म्मि वच्छलम्मि बजलाहो शाणा एबं गिराहइ होउ कयत्या नो॥
॥ढाल। सोहम सुरपति वृषन रूप कर। राहवण करे प्रभु अंगै । करिय विलेपन पुष्फ माल ठवि वर शानरण भंगै सो० ॥१॥ तब सुरवर बऊ जय जय रवकर । निश्चै धरि शाणंद । मोक्ष मारग सारथपति पाम्यों नां जस्यूं हिब नव फंद सो ० ॥२॥ कोफ ब
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